शेखपुरा जिले में प्रत्येक महीने के प्रथम मंगलवार को जल जीवन हरियाली दिवस का आयोजन किया जाता है, जिसमें इससे संबंधित अलग-अलग विभागों के द्वारा इसका आयोजन किया जाता है। हर बैठक में अधिकारियों द्वारा पर्यावरण की रक्षा व गिरते भूजल स्तर को बचाने संकल्प और कई निर्देश भी दिए जाते है, लेकिन धरातल पर इसकी स्थिति विपरीत है। कहें तो शेखपुरा में जल जीवन हरियाली अभियान की हवा निकल रही है। बता दें कि जिले में सार्वजनिक एवं निजी तालाबों की स्थिति काफी दयनीय है। यहां ना तो जल संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कोई मुहिम चलाई जाती है न ही सरकार के अभियान को धरातल पर उतारा जाता है। सरकार द्वारा जल जीवन हरियाली के तहत शहर गांव, कस्बे टोले एवं हर जगह जल संरक्षण के लिए सरकारी आहर, पोखर, पईन को अतिक्रमण मुक्त करने एवं जल संरक्षण हेतु व्यापक रूप से अभियान चला रही है। जिसका नाम सरकार ने जल जीवन हरियाली दिया है। हालांकि यह अभियान की तो शुरुआत काफी जोशो जुनून में हुई थी लेकिन यह अभियान फाइलों में सिमट कर रह गई है। आलम यह है कि जिले के विभिन्न गांव में जितने भी आहर पइन या पोखर है वह अस्तित्व विहीन होते जा रहे हैं या फिर वह सिर्फ बरसात की पानी स्टॉक करने के काम ही आते हैं। बरसात में भी इन आहर, पइन पोखरों की पानी से सिंचाई नहीं हो पता है और गर्मियों के दिनों में यह सभी जलाशय बिल्कुल मृतप्राय नजर आते हैं। ऐसे में आखिर जल जीवन हरियाली का सपना कैसे सरकार सरकार हो पाएगा और जल संरक्षण कैसे हो पाएगा।
यही कारण है कि नदी, तालाब, पोखरों की संख्या होने के बाद भी जिस पर लोगों द्वारा अप्रत्याशित रूप में अतिक्रमण कर लिया गया है, जिसके कारण जल संकट बरकरार है। जल जीवन हरियाली अभियान के तहत सभी आहर, पइन, पोखर, नदी, तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए अभियान भी चलाया जाना था लेकिन यह अभियान सिर्फ फाइलों में दबकर रह गया। अतिक्रमणकारियों को सिर्फ नोटिस कर छोड़ दिया गया वहीं जल संरक्षण नहीं किए जाने के कारण जिले के कई गांव में गर्मी की शुरुआत होते ही जलस्तर भी पूरी तरह खिसकने लगा है तथा सिंचाई के लिए लोगों को पूर्णता बिजली पर आधारित रहनी पड़ती है। अगर बिजली ना हो तो यहां अकाल की स्थिति घोषित हो जाएगी क्योंकि यहां की सिंचाई व्यवस्था बोरिंग पर निर्भर रहती है। यहां के किसानों की जान बिजली होती है। अगर बिजली ना हो तो फिर यहां का खेती व सिंचाई व्यवस्था चौपट मानी जाएगी।