अंतिम सोमवारी: इस ऐतिहासिक मंदिर में जलाभिषेक को उमड़ती है भीड़, इतिहास जानकर चौंक जायेगे आप

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सावन माह का पांचवे यानी अंतिम सोमवारी को लेकर जिले के विभिन्न मंदिरों में सुबह से ही भोले बाबा की पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी पड़ी  है। खासकर गिरिहिंडा पहाड़ पर अवस्थित शिव-पार्वती मंदिर में पूजा के लिए भीड़ लगी रही। सोमवारी की प्रात :बेला में सैकड़ों सीढियाँ चढ़कर करीब 150 फीट ऊँचे पहाड़ पर मंदिर में हजारो भक्तो ने भोले बाबा का जलाभिषेक कर मन्नते मांगी। यहाँ सुबह से ही मेला लगा रहा। मेले में फल-फूल एवं रंग-बिरंगे सजे दूकान आकर्षण का केंद्र बना रहा। पहाड़ पर स्थित मंदिर को रंग-बिरंगे रौशनी से सजाया गया। इसे पहाड़ को पर्यटन की दृष्टि कोण से जिला प्रशासन द्वारा विकसित किया जा रहा है।

पंचवदन स्थान में भी लोगो ने किया पूजा अर्चना

बरबीघा के कुसेढी गांव स्थित प्रसिद्ध पंचमुखी महादेव शिव मंदिर में अंतिम सोमवारी के दिन महादेव शिवलिंग पर काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की। इस दौरान आस-पास गांव के लोगों की भी भीड़ उमड़ी रही। मान्यता है कि स्वयं प्रकट हुए पंचमुखी शिवलिंग में दूरदराज के लोग गंगाजल लेकर बाबा शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। लोग ऐसा मानते हैं कि जो नवयुवती सावन के सभी सोमवार को नियम धर्म से बेलपत्र, गंगाजल, फल, फूल आदि से महादेव पर जलाभिषेक कर व्रत रखती है ,उनकी मनोकामना पूरी होती है। इसी तरह विभिन्न शिव मंदिर व शिवालय में अंतिम सोमवारी को श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। 

गिरिहिंडा पहाड़ अवस्थित शिव मंदिर का इतिहास है काफी पुराना 

स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर दो सौ साल पुराना है। महाभारत काल में हिडिम्भा नामक दानवी स्त्री शहर के गिरिहींडा स्थित शैल शिखर पर रहती थी। पांडव के निर्वासन काल में गदाधारी शक्तिशाली भीम भटककर यहाँ पहुंचे तथा भीम ने हिडीम्भा से गन्धर्व विवाह रचाया था। जिससे हुंदारक नामक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। जिसकी वीरता चर्चित था। इसी हिडिम्भा नामक स्त्री की स्मृति में गिरिहींडा मुहल्ला का नामकरण हुआ। गिरिहींडा पहाड़ पर स्थापित शिवलिंग को भीम द्वारा स्थापित माना जाता है। कई वर्ष पूर्व इस शिवलिंग पर चेवाडा प्रखंड के रहनेवाले कामेश्वरी लाल की इस पर नज़र पड़ी और उनके द्वारा ही भोले बाबा की पूजा-अर्चना की गयी। तब से इस मंदिर का नाम कामेश्वरनाथ पड़ा।

 

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