पति की दुर्घटना के बाद खाने के थे लाले, जीविका ने दी मदद तो 7 से 8 हजार रुपये प्रतिमाह की कर रही आमदनी
कहते हैं कि अगर मन में ठान लो और मन में जज्बा हो तो हर मुश्किल राह आसान हो जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड अंतर्गत रजौरा गांव की कंचन देवी ने। कंचन देवी का विवाह वर्ष 2007 में उदय शंकर पासवान से हुआ था। पोलदारी का काम करने वाले उदय शंकर पासवान मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। अचानक वर्ष 2018 में कंचन देवी के पति के दुर्घटना होने से दोनों पैर से दिव्यांग हो गए। पति के इलाज में सिर पर कर्ज बढ़ गया और उनके परिवार की स्थिति इतनी दयनीय हो गई की ना खाने का ठिकाना रहा, ना इलाज का और ना ही बच्चों की पढ़ाई का। ऐसे वक़्त में कंचन देवी अपने बीमार पति का इलाज और बच्चों का पेट भरने के लिए दूसरे के खेतों में मजदूरी कर दो वक्त का भोजन जुटाकर गुजर-बसर कर रही थी। ऐसी परिस्थिति में वर्ष 2019 में सतत् जीविकोपार्जन योजना अंतर्गत अत्यंत निर्धन एवं असहाय महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने हेतू सर्वे में कंचन देवी का नाम जोड़ा गया और ग्राम संगठन की खरीददारी समिति द्वारा 2020 में कंचन देवी को सतत् जीविकोपार्जन योजना के तहत जीविकोपार्जन निवेश निधि के 20 हजार रूपये की राशि का किराना दुकान का सामान खरीद कर दिया गया। इसके साथ-साथ विशेष निवेश निधि अंतर्गत 10 हजार रुपये और जीविकोपार्जन के लिए 7 हजार रूपये की राशि जीविका से उपलब्ध कराई गई।
जीविका से मदद मिलने के बाद कंचन 7 से 8 हजार रुपये प्रतिमाह की आमदनी कर रही
जीविका से मदद मिलने के बाद कंचन देवी अपने घर के बगल में गुमटी में किराना दुकान चलाने लगी। इससे प्रतिदिन 400 से 500 रुपये की बिक्री होने लगी और महीने में 3 से 4 हजार रुपये की आमदनी होने लगी। फिर उन्हें जीविका से दूसरे किस्त की राशि से 14 हजार 400 रुपये दिये गये। जिससे उन्होंने बकरी पालन शुरू किया। बकरी पालन से आमदनी कमा कर उन्होंने एक भैंस और डेढ़ बीघा खेत पट्टा पर ली। वर्तमान में कंचन देवी अपने सभी श्रोतों से 7 से 8 हजार रूपये प्रतिमाह की आमदनी कर रही है। आज कंचन देवी न सिर्फ अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं बल्कि अपने बच्चों की अच्छी पढ़ाई करवा रही हैं, अच्छी शिक्षा के लिए ट्यूसन भी भेजती हैं। जिससे वह क्षेत्र की महिलाओं के लिए मिशाल बनी हुईं हैं। कंचन देवी कहती हैं कि, अगर इस तरह का सहयोग सरकार से मिलती रहे तो मैं अपने गांव में गुमटी के बदले अपना बड़ा सा दुकान खोलना चाहती हूं और अपने बच्चों को उचित शिक्षा दिलावा कर जाॅब करवाएंगे ताकी बच्चों के आगे का जीवन दूसरे पर आश्रित न हो।
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