SHEIKHPURA: हरोहर का रौद्र रूप और चारों तरफ… पानी ही पानी

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घाटकुसुम्भा प्रखंड अंतर्गत होकर बहने वाली हरोहर नदी ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया। जिस वजह से कई घरों व स्कूलों में बाढ़ का पानी घुस गया है। वहीं, निचली इलाके बसे लोग लगभग पलायन कर चुके है। जबकि स्कूल खुली रहने के कारण के पानी में घुसकर बच्चों को स्कूल जाना पड़ रहा है। जिससे कभी भी अप्रिय घटना घटित हो सकती है। बता दें कि घाटकुसुम्भा की हरोहर नदी, गंगा नदी के सहायक है, जब गंगा पर दबाब पड़ती है तो हरोहर नदी उफान पर आ जाती है, जिससे इस इलाके के लोगों का मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है। इधर, हरोहर नदी में लगातार हो रही जलस्तर की वृद्धि पर जिला प्रशासन भी अपनी नज़र रखी हुई है। लगातार अधिकारी घाटकुसुम्भा प्रखंड का दौरा कर रहे है। रविवार की दोपहर डीएम आरिफ अहसन ने घाटकुसुम्भा प्रखंड अंतर्गत आने वाली पंचायतों का दौरा कर स्थिति से अवगत हुए और इस दिशा में संबंधित विभागों को अलर्ट मोड़ पर रखने का निर्देश दिए है। 
बाढ़ अपने साथ इन पंचायतों की लाती है बदकिस्मत 
स्थानीय लोगों का कहना है कि हर साल आने वाले बाढ़ अपने साथ घाटकुसुम्भा प्रखंड के लिए बदकिस्मती भी लाती है। कहते है कि बाढ़ का कहर देखते हुए पीढिय़ां गुजर गई पर शासन-प्रशासन ने कभी इनकी सुध नहीं ली। हर साल इस पंचायत के लोगों को अपने जलमग्न घरों को छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है। मानसून के आहट के साथ ही नदियों के किनारे बसे लोगों को राशन जुटाने व उंचे स्थान ढूंढने लगते है। बाढ़ के कारण कई गांव का मुख्यालय से एकाएक संपर्क कट जाने के बाद लोगों को कई दिनों तक टापू बनी गांव में बिना बिजली व शुद्ध पानी के जीवन जीते हैं। 
सबसे ज्यादा पानापुर पंचायत होता है प्रभावित 
ग्रामीणों ने कहा कि घाटकुसुम्भा प्रखंड के हरोहर, सोमे व सोता नदी से घिरे पानापुर, जितपारपुर व प्राणपुर गांव के लोगों का नाव के सहारे ही जिंदगी कटती है। सोमे नदी पर पुल नहीं रहने के कारण चार माह नाव व आठ माह चचरी पुल के सहारे जीवन जीने को विवश रहना पड़ता हैं। तीन नदियों के बीच में चारों ओर घिरे खासकर पानापुर पंचायत के करीब पांच से सात हजार की आबादी को हर साल बाढ़ के पानी से टापू में तब्दील होकर जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर रहते हैं। तीन नदियों से घिरा हुआ यह गांव बाढ़ का दंश हर वर्ष झेलने को विवश रहता है। बारिश के समय यहां हर साल बाढ़ आने के कारण नदी के किनारे बसे घरों में से एक दो घर कटकर नदी के गर्भ में समा जाता है। बरसात के दिनों में अचानक नदी में पानी भर जाने से क्षति इतना होता है कि कहना मुश्किल है

बाढ आने पर इन पंचायत के लोग हो जाते हैं लाचार 
बाढ़ के पानी आने पर घाटकुसुम्भा प्रखंड के कई गांव टापू मे तब्दील हो जाता है। टापू बने इन गांव के लोगों को लाचार व विवश बना देता है। यातायात के साधन नहीं रहने के कारण आवश्यक कार्य पड़ने पर गांव से ही नाव पर सवार होकर लोग आधे व एक घंटे की दूरी तय कर जिला एवं प्रखंड मुख्यालय पहुंचते हैं। बीमार एवं गर्भवती महिलाओं को नाव पर ही लाया जाता है। बाढ़ के दिनों मे यह गांव चारों ओर से पानी में घिरकर टापू बन जाता है। गांव से बाहर निकलने की कोई पक्की सड़क नहीं है। अन्य दिनों कच्ची सड़क के सहारे लोग गुजरते हैं जबकि बाढ़ के दिनों नाव के सहारे ही दिनचर्या करते हैं। हर वर्ष बाढ़ की दंश झेलने को विवश पानापुर पंचायत के लोगों की आदत बन गई है।

बाढ के समय ऊंचे स्थानों पर हो जाता है बसेरा
पानापुर पंचायत के पानापुर, जितपारपुर, प्राणपुर व हरनामचक गांव के अधिकांश परिवार बांध व कच्ची सड़क पर शरण लेने को मजबूर हो जाते हैं। बांध पर पन्नी टांग कर अपने पशुओं के साथ दर्जनों परिवारों को बाढ़ से तबाही का मंजर को झेलना पड़ता है। इन गांव के लोग बताते हैं कि यहां उंची सदा व सोमे नदी पर बने एक पुल पर जिंदगानी गुजारते है। 

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